गुरुवार, अक्तूबर 31

LOSSES IN TRANSFORMER | ट्रांसफार्मर में हानियाँ क्या है कितने प्रकार की होती है

LOSSES IN TRANSFORMER


       हम इस पोस्ट में ट्रांसफार्मर में होने वाली हानिया (losses in transformer) तथा ट्रांसफार्मर की दक्षता (efficiency of transformer ) के बारे में विस्तृत में जानेगे |

ट्रांसफार्मर की हानि से तात्पर्य---

   ट्रांसफार्मर से प्राप्त  output power (i✕v ) तथा ट्रांसफार्मर के input में दी गई पॉवर के बीच तुलना करने पर इनके बीच पॉवर (i✕v ) का जो अंतर प्राप्त होता है  वह  ट्रांसफार्मर में क्षय हो गया होता है, इसी क्षय उर्जा को “ट्रांसफार्मर की हानि” के नाम से जानते है | यह अव्यावहारिक है कि इसकी आउटपुट (output) तथा इनपुट (input) मापी जाये, क्योंकि दोनों का मान लगभग समान ही होगा। 
ट्रांसफार्मर में हानियाँ  क्या है कितने प्रकार की होती है


सफार्मर में हानियाँ  क्या है



Losses in Transformer

          ट्रांसफार्मर एक स्थैतिक मशीन (static machine) है जिस कारण इसमें वायु एवं घर्षण हानियाँ (winding and friction losses) नहीं होती है । ट्रांसफार्मर में केवल (i) कोर या लोह (iron) हानियाँ तथा (ii) ताम्र हानियाँ (copper losses) ही होती हैं।

Core or Iron Losses


    Core or Iron Losses को दो भागों में बाँटा जा सकता है
(1) हिस्टेरीसिस हानियाँ तथा
(2) भंवर धारा हानियाँ(eddy  current  losses ) ।

(१)  हिस्टेरीसिस हानियाँ (Hysteresis Losses)

  ट्रांसफार्मर कोर में चुम्बकीय फ्लक्स में प्रत्यावर्तन(बार-बार दिशा परिवर्तन) से कोर पटलों के अणु पहले एव दिशा में तथा फिर दूसरी दिशा में चुम्बकित होते हैं. इस क्रिया में ऊर्जा का कुछ भाग व्यय हो जाता है । यह ऊर्जा अणुओं के घर्षण के कारण ताप के रूप में परिवर्तित हो जाती है जो कि ट्रांसफार्मर core  को गर्म कर देती है। हिस्टेरीसिस हानियाँ निम्न बातों पर निर्भर करती है
1.    चुम्बकीय पदार्थ या कोर के अधिकतम फ्लक्स घनत्व Bmax पर
2.    supply की आवृत्ति f पर
3.    पदार्थ के आयतन V पर

 S.I. प्रणाली में हिस्टेरीसिस हानियाँ
सफार्मर में हानियाँ  क्या है

यहाँ –
f = प्रदाय की आवृत्ति,
V = चुम्बकीय पदार्थ का घन मीटर में आयतन है तथा
𝜼 = एक स्थिरांक है जो कि स्टेनमेटज का हिस्टेरीसिस गुणांक कहलाता है तथा चुम्बकीय धातु के गुण पर निर्भर करता है ।
 चूँकि ट्रांसफार्मर कोर में चुम्बकन वक्र शीघ्र परिवर्तित होता रहता है इसलिये हिस्टेरीसिस हानियों को कम करने के लिये ट्रांसफार्मर कोर को ऐसे पदार्थों से बनाया जाता है जिनका हिस्टेरोसिस गुणाँक (𝜼) काम हो | ट्रांसफार्मर कोर में अधिकतर सिलीकन स्टील तथा परमालॉय (parmalloy) के core प्रयोग में लाये जाते हैं क्योंकि इनका हिस्टेरोसिस गुणांक क्रमशः 1.91 तथा 0.25 होता है।

(2) भंवर धारा हानियाँ (Eddy Current Losses)-

   प्रत्यावर्ती फ्लक्स (बार-बार दिशा परिवर्तन) के कारण ट्रांसफार्मर कोर में वाइंडिंग (winding) की भाँति वि. वा. बल प्रेरित होता है, जिसके कारण ऊर्जा व्यय होती है, यह ऊर्जा व्यय भंवर धारा हानियाँ कहलाती है ।
        यद्यपि कोर इत्यादि में बहुत कम वि. वा. बल प्रेरित होता है लेकिन कोर पटलों (core lamination) में कम प्रतिरोध होने के कारण,उच्च भंवर धारायें प्रेरित होती हैं । यह धारायें कोर में कई closed short circuit बनाती हैं, जिससे ऊष्मा उत्पन्न होती है तथा गर्म हो जाती है।
   भंवर धारा हानियों को कम करने के लिये कोरो को अनेक पटलों,(पतली-पतली) या पत्तियों को जोड़कर बनाया जाता है । इस प्रकार टुकड़े पटलित (laminated) कहलाते हैं । इस पतली-पतली पत्तियों के टुकड़ों पर वार्निश की पतली पर्त चढ़ा दी जाती है जिसके कारण चुम्बकीय बल रेखाओं का पथ छोटा हो जाता है । धाराओं के क्षीर्ण होने से कोर कम गर्म होती है ।
भंवर धारा हानियाँ निम्न बातों पर निर्भर करती है।
अधिकतम फ्लक्स घनत्व ( Bmax),
 पटलों की मोटाई t,
सप्लाई आवृत्ति(f) तथा कोर के आयतन V पर ।

  यदि अधिकतम फ्लक्स घनत्व ( Bmax) वेबर प्रति वर्ग मीटर में, f = सप्लाई की आवृत्ति प्रति सेकण्ड लें, t पटल (lamination) की मोटाई मीटर में तथा V = कोर का आयतन घन मीटर में हो तब भंवर धारा हानियाँ-
सफार्मर में हानियाँ  क्या है


   उपरोक्त सत्र से स्पष्ट है कि भंवर धारा हानियाँ पटलों की मोटाई t के वर्ग के समानुपाती होती है। अतः यदि पटलों की मोटाई कम कर दी जाये तो भंवर धारा हानियाँ कम की जा सकती हैं। यही कारण है कि ट्रांसफार्मर तथा अन्य मशीनों को पतली पटलों द्वारा बनाया जाता है। कोर हानियों को ट्रांसफार्मर के खुले परिपथ परीक्षण द्वारा ज्ञात करते हैं।

COPPER LOSSES (ताम्र हानियाँ)

   यह हानियाँ ट्रांसफार्मर वाइंडिंग (transformer's winding) के प्रतिरोध तथा उनमें से प्रवाहित होने वाली धारा के कारण होती है ।
यदि I1 व I2 क्रमशः प्रायमरी तथा  secondary करंट है.  R1 and R2 प्रायमरी तथा  secondary winding का प्रतिरोध है तब
ट्रांसफार्मर की  हानिया

  
 अतः ताम्र हानियाँ धारा के वर्ग के समानुपाती होती है ।

     धारा का मान ट्रांसफार्मर पर दिये गये लोड पर निर्भर करता है। यदि लोड आधा हो तो हानिया (1/2)2 = 1/4 गुना हो जायेगी तथा यदि लोड दुगुना हो तो ताम्र हानियाँ (2)2 = 4 गुना हा जायेगी। ट्रांसफार्मर के कण्डलन का प्रतिरोध ताम्र चालक की लम्बाई के समानुपाती तथा अनुप्रस्थ काट के प्रतिलोमानुपाती होता है। उच्च वोल्टता winding का प्रतिरोध, निम्न वोल्टता winding की अपेक्षा अधिक होता है।


ट्रांसफार्मर की दक्षता(Efficiency of Transformer)

     किसी निश्चित विद्युत लोड तथा शक्ति गुणक(पॉवर फेक्टर) पर,ट्रांसफार्मर की output तथा input का अनुपात ट्रांसफार्मर की दक्षता होता है। आउटपुट तथा इनपुट एक ही इकाई में मापी जानी चाहिये अर्थात् वाट या किलोवाट में।

ट्रांसफार्मर की  दक्षता


     ट्रांसफार्मर एक उच्च दक्षता वाली मशीन है इसलिये इसमें बहुत कम हानियाँ होती हैं। यह अव्यावहारिक है कि इसकी आउटपुट (output) तथा इनपुट (input) मापी जाये, क्योंकि दोनों का मान लगभग समान ही होगा। ट्रांसफार्मर की दक्षता ज्ञात करने का सबसे सरल उपाय यह है कि ट्रांसफार्मर में होने वाली हानियों को माप लिया जाये और तब दक्षता ज्ञात की जाये।
ट्रांसफार्मर की दक्षता


 hello दोस्तों इस पोस्ट में हमने आपको '' LOSSES IN TRANSFORMER | ट्रांसफार्मर में हानियाँ  क्या है कितने प्रकार की होती है  '' के बारे में सारी जानकारी दी है इसके अलावा अगर आपका  कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें, धन्यवाद









मंगलवार, अक्तूबर 22

D.O.L,स्टार-डेल्टा ,ऑटो ट्रांसफार्मर स्टार्टर के बारे में पूरी जानकारी


3-PHASE INDUCTION MOTOR STARTER


क्यों लगाया जाता है स्टार्टर ?


     स्कूअर्ल केज वाइन्डिंग (रोटर) इतनी कम रेजिस्टेन्स की होती है कि जब मोटर को सप्लाई दी जाती है तो वह एक शॉर्ट ट्रान्सफार्मर की तरह काम करती है। इसलिए मोटर बहुत अधिक धरा लेगी,जिससे सप्लाई वोल्टता पर गिरावट आ सकती है।

   आपने देखा होगा जब कोई मोटर स्टार्ट होता है तब कुछ क्षण के लिए वोल्टेज कम हो जाता  हैं। इतना तो तब होता है, जब मोटर को स्टार्टर से स्टार्ट किया जाता है। हालांकि छोटी मोटरों को सीधी लाइन से जोड़कर चलाया जा सकता है।
     मोटर की स्टार्टिंग करेन्ट अथवा वोल्टेज को कम करने के लिए स्टार्टर का प्रयोग किया जाता है। कम वोल्टेज देने का सबसे आसान तरीका स्टार-डेल्टा स्टार्टर है।
3 फेज इंडक्शन को स्टार्ट करने के लिए निम्नलिखित स्टार्टर प्रयोग में लाये जाते है
लेकिन इस पोस्ट में कुछ मुख्य स्टार्टर के बारे में जानेगे  

  
(i)प्रत्यक्ष लाइन जोड़ने वाला स्टार्टर (Direct on line starter),
(ii) स्टार-डेल्टा स्टार्टर (Star-delta starter)(click to jump) 
(iii) लाइन प्रतिरोध स्टार्टर (Line resistance starter), 
(iv) लाइन प्रतिघात स्टार्टर (Line reactance starter),
(v) स्वपरिणामित्र स्टार्टर (Auto-transformer starter)(clickto jump),
(vi) घूर्णक प्रतिरोध स्टार्टर (Rotor resistance starter)
dol starter


(1) प्रत्यक्ष लाइन जोड़ने वाला स्टार्टर (Direct on Line Starter (D.O.L))


       इस प्रकार का स्टार्टर उन मोटरों के लिए उपयुक्त होता है जिनमें स्टार्टिंग करंट को कम करने की आवश्यकता नहीं होती। यहाँ स्टार्टर लगाने का मुख्य उद्देश्य मोटर को असामान्य स्थितियों(over load protection, no volt protection ) में सुरक्षा प्रदान करना होता है। ।
  सामान्यत: 5 H.P. से कम पॉवर  की मोटरो के लिए  इस प्रकार के स्टार्टर(DOL STARTER) प्रयुक्त  होता हैं।

संरचना (Construction of DOL starter):-


   इस प्रकार के स्टार्टर की परिपथ व्यवस्था तथा उसका मोटर से संयोजन चित्र में दर्शाया गया है। यह स्टार्टर एक विद्युत चुम्बकीय कॉन्टेक्टर, एक ऑन पुश बटन, एक ऑफ पुश बटन तथा एक अतिभार रिले (over load relay) से निर्मित इकाई होती है,| चित्र में स्टार्टर का संयोजन एक ओर supply से तथा दूसरी ओर 3 फेज मोटर से दर्शाया गया है।
dol starter


कार्यविधि(Working Method)

  इस स्टार्टर द्वारा मोटर को ON किया जा सकता है, आफ (off) किया जा सकता है  तथा अतिभार रक्षण (over load protection) व शून्य वोल्टता रक्षण(no volt protection) प्राप्त किया जा सकता है।
जब स्टार्टर का ऑन पुश-बटन दबाया जाता है तो उसके कॉन्टेक्टर की coil का विद्युत परिपथ पूर्ण होने से वह चम्बकित होती है और कॉन्टेक्टर को प्रचालित कर, मोटर को सीधी लाइन वोल्टता से जोड़ देती है और मोटर सीधा लाइन पर प्रारम्भ हो जाती है। मोटर को ऑफ करने के लिए  आफ पुश-बटन को दबाया जाता है जिससे कॉन्टेक्टर की coil का विद्युत परिपथ भंग होता है और वह विचुम्बकित हो जाती है। जिससे कॉन्टेक्टर प्रचालित होकर मोटर को विद्युत परिपथ से अलग (isolate) कर देता है और सप्लाई न मिलने से मोटर ऑफ हो जाती है।






  • ट्रांसफार्मर से सम्बन्धी सभी प्रश्नों के उत्तर  




  • DC  मोटर स्टार्टर (DC मोटर को कैसे स्टार्ट  किया जाता है ? )

  • (2) Star-Delta Starter

     
           यह स्टार्टर मोटर को प्रारम्भ करने के लिए, पहले उसे star(Y) में संयोजित कर, उसे प्रारम्भ करता है और फिर delta(△) में संयोजित कर, सामान्य प्रचालन स्थिति प्रदान करता है। जब स्टार्टर के लिए मोटर star  संयोजित होकर सप्लाई से जुड़ती है तो मोटर की प्रतिफेज वोल्टता, लाइन की सामान्य वोल्टता VL का 1/3 गुना अर्थात् VL/3 या सामान्य वोल्टता का 57.7% ही होती है। इस प्रकार मोटर 57.7%  वोल्टता पर, कम starting करंट के साथ प्रारम्भ होती है। जब हम कुछ समय बाद मोटर को पुनः डेल्टा में संयोजित कर देता है तो मोटर को सामान्य वोल्टता प्राप्त हो जाती है और वह सामान्य वोल्टता पर प्रचालित हो जाती है।

    स्टार –डेल्टा स्टार्टर दो प्रकार का होता है
    ·    हस्तचालित (manual) स्टार डेल्टा स्टार्टर
    ·   स्व-चालित (automatic)  स्टार डेल्टा स्टार्टर

    हस्त-चालित (manual) स्टार डेल्टा स्टार्टर


    संरचना (Construction)


         हस्त-चालित स्टार्टर में एक हस्तचालित कॉन्टेक्टर होता है, जिसकी तीन स्थितियाँ होती हैं, एक ओर स्टार संयोजन (START), स्थिति बीच में ऑफ (OFF) स्थिति तथा दूसरी ओर डेल्टा संयोजन (RUN) स्थिति होती है। हत्थे को ऊपर की ओर करने पर START तथा नीचे करने पर RUN स्थिति प्राप्त होती है। यहाँ इस बात के लिए यान्त्रिक ताला (mechanical lock) की व्यवस्था होती है कि हत्था बिना START की ओर जाये RUN की ओर नहीं ले जाया जा सकता ताकि मोटर सीधा डेल्टा में सप्लाई से न जोड़ी जा सके। हस्त चालित कॉन्टेक्टर (manual contactor) स्टार्टर में हत्थे को ऑन (RUN) स्थिति में रोकने के लिए विद्युत चुम्बकीय धारण कण्डली (holding coil) अतिभार रक्षण रीले(over load protection relay) तथा एक ऑफ (OFF) पुश-बटन भी होता है। इसमें मोटर के लिए छः टर्मिनल तथा सप्लाई के लिए तीन टर्मिनल होते हैं। स्टार-डेल्टा स्टार्टर का प्रयोग समान्यतः 15 H.P. तक की मोटरों के लिए किया जाता है
    star delta starter

    कार्यविधि Working Method

          
        हस्त-चालित स्टार्टर मोटर को कम वोल्टता पर प्रारम्भ करता है  तथा सामान्य वोल्टता पर फुलस्पीड देता हैं साथ ही मोटर को अतिभार रक्षण(over load protection) व शून्य वोल्टता रक्षण(no load protection) भी प्रदान करते हैं। हस्त चालित स्टार्टर से मोटर को स्टार्ट करने के लिए हत्थे की सहायता से मोटर को स्टार-में जोड़ते है तथा फिर कुछ समय बाद, मोटर की चाल सामान्य चाल के निकट आ जाने पर उसे पुनः हत्थे की सहायता से डेल्टा में संयोजित कर देते है
    मोटर को ऑफ (OFF) करने के लिए स्टार्टर में ऑफ पुश-बटन होता है जिसे दबाने से धारण कुण्डली (holding coil) विचुम्बकित होती है जिससे सप्लाई देने वाला कॉन्टेक्टर प्रचालित होकर मोटर को सप्लाई से वियोजित (disconnect) कर देता है और मोटर ऑफ हो जाती है।

    स्व-चालित (automatic)  स्टार डेल्टा स्टार्टर


        स्व-चालित स्टार-डेल्टा स्टार्टर की संरचना  हस्त चालित स्टार्टर के सामान ही होती है इसमे केवल एक अतिरिक्त टाइम डिले रीले (time delay relay), तथा  तीन  कॉन्टेक्टर"एक  लाइन के लिए ,दूसरा डेल्टा के लिए,तीसरा स्टार के लिए    लगा दिया जाता है
    इसके संरचना को विस्तृत में जानने के लिए उपर्युक्त हस्त चलित स्टार्टर की संरचना को देखे
    automatic star delta starter

    कार्यविधि Working Method


      यह भी स्टार्टर मोटर को कम वोल्टता प्रारम्भन तथा सामान्य वोल्टता प्रचालन देता हैं साथ ही मोटर को अतिभार रक्षण(over load protection) व शून्य वोल्टता रक्षण(no volt protection) भी प्रदान करते हैं। दोनों के प्रचालन में केवल इतना अन्तर होता है कि हस्त चालित स्टार्टर से मोटर को हत्थे के द्वरा पहले स्टार में-संयोजित करते है तथा फिर कुछ समय बाद, मोटर की चाल सामान्य चाल के निकट आ जाने पर उसे पुनः डेल्टा में संयोजित कर दिया जाता है, परन्तु स्व-चालित स्टार्टर में केवल ऑन-पुश बटन को दबाने की आवश्यकता होती है जिससे मोटर स्टार में प्रारम्भ हो जाती है। मोटर के पर्याप्त चाल ग्रहण करने के बाद, पूर्व व्यवस्थित समय पर टाइम डिले रीले प्रचालित होकर, स्टार-कॉन्टेक्टर को ऑफ तथा डेल्टा कॉन्टेक्टर को ऑन कर देती है, जिससे मोटर डेल्टा-संयोजित होकर सामान्य वोल्टता पर प्रचालित हो जाती है। मोटर को ऑफ (OFF) करने के लिए स्टार्टर में ऑफ पुश-बटन होता है जिसे दबाने से धारण कुण्डली (holding coil) विचुम्बकित होती है जिससे सप्लाई देने वाला कॉन्टेक्टर प्रचालित होकर मोटर को सप्लाई से वियोजित (disconnect) कर देता है और मोटर ऑफ हो जाती है।




    Auto-transformer Starter

         यह भी 3-फेज इंडक्शन मोटरों के प्रारम्भन की न्यून वोल्टता स्टार्टर विधि पर आधारित स्टार्टर है जिसमें starting के समय, starting विद्युतधारा को कम करने के लिए एक auto-transformer का प्रयोग किया जाता  है। यह स्टार्टर, मोटर को starting के लिए आवश्यक न्यून वोल्टता ऑटो ट्रांसफार्मर द्वारा देता है और मोटर के गतिशील हो जाने के बाद उसे सीधा सप्लाई की वोल्टता से जोड़कर, मोटर को सामान्य वोल्टता प्रचालन देता है।

    संरचना Construction

     यह भी स्टार्टर हस्तचालित (manual) तथा स्व-चालित (automatic)भी होता है| इस पोस्ट में हम हस्तचालित ऑटो ट्रांसफार्मर स्टार्टर के बारे में बात करेगे । यह एक तीन स्थितियों, (START, OFF, व RUN) वाले हस्त-चालित कॉन्टेक्टर, एक धारण कुण्डली, एक अतिभार रिले(over load रिले ), एक ऑटो ट्रांसफार्मर, एक ऑफ पुश बटन तथा छ: टर्मिनल,( तीन सप्लाई तथा तीन मोटर हेतु,) व्यवस्था वाली इका होती है जिसका मोटर के साथ संयोजन दिखाया गया है
    automatic star delta starter

    कार्यविधि Working Method


       इस स्टार्टर द्वारा भी 3-फेज इंडक्शन मोटरों को ऑन, ऑफ तथा अतिभार रक्षण(over load protection) एवं शून्य वोल्टता रक्षण(no volt protection) प्रदान किया जाता है। हस्त-चालित ऑटो ट्रांसफार्मर स्टार्टर में हस्त-चालित कॉन्टेक्टर को START स्थिति में रखकर, मोटर को ऑटो ट्रांसफार्मर से प्राप्त उसे न्यून विद्युतधारा पर प्रारम्भ कर लिया जाता है और जब मोटर पर्याप्त गति प्राप्त कर लेता है तो पुनः हत्थे की सहायता से, हस्त-चालित कॉन्टेक्टर को RUN स्थिति में लाकर, मोटर को सामान्य वोल्टता पर प्रचलित कर दिया जाता है। यहाँ भी START RUN के बीच यान्त्रिका ताला व्यवस्था (mechanical lock होती है जिससे  हत्थे को बिना START पर लाये RUN में नहीं लाया जा सकता।

     hello दोस्तों इस पोस्ट में हमने आपको इंडक्शन मोटर स्टार्टर(DOL STARTER, STAR-DELTA STARTER, AUTO TRANSFORMER STARTER )  के बारे में सारी जानकारी दी है इसके अलावा अगर आपका  कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें, धन्यवाद


    शुक्रवार, अक्तूबर 11

    डी. सी.मोटर स्टार्टर हिंदी में(DC MOTOR STARTER IN HINDI)


    दिष्ट धारा मोटर स्टार्टर (D.C. MOTOR STARTER)

    स्टार्टर की आवश्यकता (Necessity of Starter) 

       जब कोई मोटर स्थिर (stationary) अवस्था में होती है तो उसमें कोई विरोधी विद्युत वाहक बल (back e.m.f) उत्पन्न नहीं होता है तथा आर्मेचर कम प्रतिरोध वाले परिपथ  का कार्य करता है । यदि मोटर को मुख्य सप्लाई (supply) के साथ सीधा ही जोड़ दिया जाये तो आर्मेचेर चालक मुख्य सप्लाई से अधिक धारा ग्रहण करने लगते हैं जिसके निम्न परिणाम हो सकते  हैं...

    1)  आर्मेचेर कुण्डलन (winding) का विद्युतरोधन नष्ट हो सकता है।
    2)  दिक़परिवर्तक (commutator) पर अधिक स्फुलिंग या चिंनगारियाँ (sparking) उत्पन हो जायेंगी।
    3)  सप्लाई वोल्टता पर गिरावट आ सकती है।
    4)  बहुत ऊँचा प्रारम्भिक बलाघूर्ण (starting torque) उत्पन्न होगा, जिससे मोटर की गति अचानक बहुत अधिक बढ़ जायेगी तथा वह मोटर के भागों को तथा मोटर पर लगे लोड को क्षति पहुंचा सकती है।

         इसलिये प्रारम्भिक धारा को सीमित करने के लिये स्टार्टर का प्रयोग किया जाता है जो कि मोटर प्रारम्भ करने के समय प्रयुक्त वोल्टता को कम करके आर्मेचेर में भेजता है। स्टार्टर का सरल रूप एक परिवर्ती प्रतिरोध (variable resistor) है,जिससे मोटर को चलाते समय आर्मेचेर  की श्रेणी में जोड़ लिया जाता है । जैसे-जैसे मोटर चाल पकड़ती जाती है तथा विरोधी वि. वा. बल स्थापित हो जाता है, वैसे-वैसे प्रतिरोध को आर्मेचर परिपथ से कम करते जाते है । जब मोटर अपनी सामान्य चाल को प्राप्त कर लेती है तो प्रतिरोध को आर्मेचर परिपथ में पूर्ण रूप से अलग कर लिया जाता है ।


    मुख्य रूप में दिष्ट धारा मोटरों के लिये निम्नलिखित स्टार्टर प्रयोग किये जाते हैं।

    शन्ट तथा कम्पाउण्ड मोटरों के लिये स्टार्टर __
    शन्ट तथा कम्पाउण्ड मोटरों के लिये दो प्रकार के स्टार्टर प्रयोग में लाये जाते हैं
    (i)           तीन प्वाइन्ट स्टाटर (three point starter) तथा
    (ii)         चार प्वाइन्ट स्टार्टर (four point starter)

    (I) तीन प्वाइन्ट स्टार्टर (Three point starter)—

    चित्र  में तीन प्वाइन्ट स्टार्टर का विद्युतीय आरेख दिखाया गया है।
    THREE POINT STARTER
    चित्र न. -1 


    संरचना-  
         इस स्टार्टर में तीन टर्मिनल (पॉइंट) बने होते हैं जिस पर L, A तथा Z अक्षर अंकित होते हैं। लाइन का धनात्मक सिरा L से संयोजित किया जाता है तथा लाइन का ऋणात्मक सिरा मोटर आर्मेचर के एक सिरे A2 तथा क्षेत्र के एक सिरे z2 को आपस में एक मिलाकर बने प्वाइन्ट पर दिया जाता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है मोटर आर्मेचर का दूसरा सिरा A2 स्टार्टर के प्वाइन्ट A से संयोजित किया जाता है तथा मोटर क्षेत्र का दूसरा सिरा Z, स्टार्टर के प्वाइन्ट Z से संयोजित रहता है। स्टार्टर का प्वाइन्ट L स्टार्टर की अधिभार कुण्डली O.C. (overload coil) द्वारा प्रारम्भन भुजा से संयोजित होती है। प्रारम्भन भुजा को पकड़ने वाला मूठ विद्युतरोधित पदार्थ से बना होता है।

    कार्य विधि:-
        जब मोटर को प्रारम्भ (Start) करना होता है तब मुख्य स्विच को बन्द (closed) कर देते है तथा तब प्रारम्भन भुजा (Starting arm) को धीरे-धीरे दायीं ओर चलाते है। जब तक भूजा स्टैंड न० 1 के सम्पर्क में होती है तब तक क्षेत्र परिपथ (field circuit) लाइन के सीधा पाश्व (across)में संयोजित रहता है तथा इसी समय कुल प्रारम्भन प्रतिरोध (starting resistance) आर्मेचर के श्रेणी में होता है। आर्मेचर द्वारा ली गई प्रारम्भन धारा (starting current)
    जहाँ Rs = प्रारम्भन प्रतिरोध तथा Ra =आर्मेचेर  प्रतिरोध है।
     अब जैसे ही प्रारम्भन भुजा को आगे की ओर चलाया जाता है, प्रारम्भन प्रतिरोध (Rs) घटता जाता है। अब प्रारम्भन भुजा 'ON' स्टैंड  पर पहुँच जाती है अर्थात् मोटर अपनी पूर्ण गति प्राप्त कर लेती है तब प्रारम्भन प्रतिरोध पूर्ण रूप से कट जाता है।

    (A) वोल्टताहीन कुण्डली (No-volt-coil) –
       यह कुण्डली सिलिकॉन मिश्रधातु पत्तियों (lamination) पर कुण्डलित(winding) होती है। जिसमें पतले विद्युतरोधित तार से इतने वर्तन(टर्न) दिये जाते है कि मोटर क्षेत्र की पूर्ण धारा उससे सरलता से प्रवाहित हो सके वोल्टताहीन कुण्डली (NC). क्षेत्र टर्मिनल Z की श्रेणी में जोड़ी जाती है । इस कुण्डली के मुख्य दो कार्य हैं । प्रथम, प्रारम्भन भुजा (starting arm) को चुम्बकीय बल द्वारा मोटर की पूर्ण गति की स्थिति में ON' स्टैंड पर पकड़े रखना तथा दूसरा यदि सप्लाई वोल्टता अचानक बन्द हो जाये तो अचुम्बकीय होकर प्रारम्भन भुजा को छोड़ देना, ताकि यह स्प्रिंग दाब के कारण 'OFF' स्थिति पर चली जाये तथा पुनः विद्युत सप्लाई आने पर मोटर को सुरक्षापूर्वक प्रारम्भ किया जा सके।

    (B) अधिभार कुण्डली (over load coil) या OC:-
    यह कुण्डली मोटे विद्युतरोधी तारों के बहुत कम वर्तनों (turns) से बनी होती है तथा प्रारम्भन भुजा(staring arm) तथा लाइन के श्रेणी में जुड़ी रहती है। इसका मुख्य कार्य परिपथ में अधिक लोड धारा प्रवाहित होने पर, चुम्बकीय क्षेत्र उत्पत्र करके लीवर (lever) को उठा कर वोल्टताहीन कुण्डली (NC) के दोनों सिरों को मिला देना है, जिससे वोल्टताहीन कुण्डली (NC) अचुम्बकीय होकर प्रारम्भन भुजा को छोड़ दे तथा प्रारम्भन  भुजा स्प्रिंग प्रभाव से 'OFF अवस्था में आ जाये। इस प्रकार अधिभार कुण्डली OC किसी दोष के कारण मोटर आर्मेचर (armature) परिपथ में अधिक धारा प्रवाह होने के सम्भावित खतरे से सुरक्षा,वोल्टताहीन कुण्डली (NC) के सहयोग द्वारा प्रदान करती है।

    (II) चार प्वाइन्ट स्टार्टर (Four point starter)



    4 POINT STARTER
    चित्र न. 2 


          यह स्टार्टर शन्ट तथा कम्पाउण्ड दोनो ही मोटरों के लिये प्रयोग किया जाता है जहाँ पर स्टार्टर द्वारा ही मोटर की गति को नियन्त्रण (regulate) करना हो इस स्टार्टर में चार प्वाइन्ट होते हैं । 3 प्वाइन्ट L, Z तथा A तथा एक चौथा प्वाइन्ट N होता है जिस पर सप्लाई लाइन का ऋणात्मक तार जोड़ा जाता है जैसा कि चित्र 2 में दिखाया गया है। चार प्वाइन्ट स्टार्टर में वोल्टताहीन (N.C) कुण्डली मोटर की क्षेत्र कुण्डली की श्रेणी में नहीं जोड़ी जाती बल्कि दिष्ट धारा सप्लाई के पार्श्व(across) में प्रारम्भन प्रतिरोध (Rs) की श्रेणी जोड़ी जाती है । वोल्टताहीन कुण्डली (Non-volt coil) मुख्य सप्लाई के सीधे पार्श्व में होती है ताकि OC के सम्पर्कों के अतिभार धारा के कारण लघुपथित(SHORT CIRCUIT) होने पर, NC चुम्बकित होकर प्रारम्भन भुजा स्प्रिंग दाब के कारण,OFF स्थिति में जाकर अतिभार धारा(OVER LOAD CURRENT) से मोटर की सुरक्षा कर सके । इसके लिये No-volt coil (NC) के श्रेणी में एक सुरक्षात्मक प्रतिरोध R भी लगा दिया जाता है जैसा कि चित्र  में दिखाया गया है

    (3) श्रेणी मोटरों के स्टार्टर (Series motor starter)-
        श्रेणी मोटर के लिये स्टार्टर में भी एक उपयुक्त परिवर्ती प्रतिरोध होता है जो कि मोटर को चलाते समय आर्मेचर परिपथ की श्रेणी में जोड़ दिया जाता है । प्रतिरोध को धीरे-धीरे पदों में काटते (cut-off) जाते हैं, जैसे-जैसे मोटर गति को प्राप्त करती जाती है ।
    चित्र  न. 3 

     चित्र 3  में वोल्टताहीन कुण्डली (No-volt coil) के द्वारा स्टार्टर के आन्तरिक संयोजन (internal connection) दिखाये गये है इसमें वोल्टताहीन कुण्डली को सुरक्षित प्रतिरोध (R) की श्रेणी में जोड़ा गया है । इस स्थिति में यदि किसी कारणवश पीछे से सप्लाई बन्द हो जाये तो स्टार्टर का हैण्डिल स्वयं स्प्रिंग की मदद से वापिस चला जाता है। इस स्थिति में सुरक्षा वोल्टताहीन कुण्डली द्वारा होती है
    प्राय: श्रेणी मोटर के स्टार्टर का प्रयोग मोटर की गति को नियंत्रण करना है


    दोस्तों इस पाठ में हमने आपको डीसी मोटर स्टार्टर  के बारे में सारी जानकारी दी है इसके अलावा अगर आपका  कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें, धन्यवाद

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