दिष्ट धारा मोटर स्टार्टर (D.C. MOTOR STARTER)
स्टार्टर की आवश्यकता (Necessity of Starter)
जब कोई मोटर स्थिर (stationary) अवस्था में होती है तो उसमें कोई विरोधी विद्युत वाहक बल (back e.m.f) उत्पन्न नहीं होता है
तथा आर्मेचर कम प्रतिरोध वाले परिपथ का
कार्य करता है । यदि मोटर को मुख्य सप्लाई (supply) के साथ
सीधा ही जोड़ दिया जाये तो आर्मेचेर चालक मुख्य सप्लाई से अधिक धारा ग्रहण करने लगते
हैं जिसके निम्न
परिणाम हो सकते हैं...
1) आर्मेचेर
कुण्डलन (winding) का विद्युतरोधन नष्ट हो सकता है।
2) दिक़परिवर्तक
(commutator)
पर अधिक स्फुलिंग या चिंनगारियाँ (sparking) उत्पन
हो जायेंगी।
3) सप्लाई
वोल्टता पर गिरावट आ सकती है।
4) बहुत
ऊँचा प्रारम्भिक बलाघूर्ण (starting torque) उत्पन्न होगा, जिससे मोटर की गति अचानक बहुत अधिक बढ़ जायेगी तथा वह मोटर के भागों को
तथा मोटर पर लगे लोड को क्षति पहुंचा सकती है।
इसलिये
प्रारम्भिक धारा को सीमित करने के लिये स्टार्टर का प्रयोग किया जाता है जो कि
मोटर प्रारम्भ करने के समय प्रयुक्त वोल्टता को कम करके आर्मेचेर में भेजता है।
स्टार्टर का सरल रूप एक परिवर्ती प्रतिरोध (variable resistor) है,जिससे मोटर को चलाते समय आर्मेचेर की श्रेणी में जोड़
लिया जाता है । जैसे-जैसे मोटर चाल पकड़ती जाती है तथा विरोधी वि. वा. बल स्थापित
हो जाता है, वैसे-वैसे प्रतिरोध को आर्मेचर परिपथ से
कम करते जाते है । जब मोटर अपनी सामान्य चाल को प्राप्त कर लेती है तो प्रतिरोध को
आर्मेचर परिपथ में पूर्ण रूप से अलग कर लिया जाता है ।
मुख्य रूप में दिष्ट धारा मोटरों के लिये निम्नलिखित
स्टार्टर प्रयोग किये जाते हैं।
शन्ट तथा कम्पाउण्ड मोटरों के लिये
स्टार्टर __
शन्ट तथा कम्पाउण्ड मोटरों के लिये दो
प्रकार के स्टार्टर प्रयोग में लाये जाते हैं
(i)
तीन प्वाइन्ट स्टाटर (three point starter) तथा
(ii)
चार प्वाइन्ट स्टार्टर (four point starter) ।
(I) तीन प्वाइन्ट
स्टार्टर (Three point starter)—
चित्र में तीन प्वाइन्ट स्टार्टर का
विद्युतीय आरेख दिखाया गया है।
![]() |
चित्र न. -1 |
संरचना-
इस स्टार्टर में तीन टर्मिनल (पॉइंट)
बने होते हैं जिस पर L, A तथा Z अक्षर अंकित
होते हैं। लाइन का धनात्मक सिरा L से संयोजित
किया जाता है तथा लाइन का ऋणात्मक सिरा मोटर आर्मेचर के एक सिरे A2 तथा क्षेत्र के एक सिरे z2 को आपस में
एक मिलाकर बने प्वाइन्ट पर दिया जाता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है मोटर
आर्मेचर का दूसरा सिरा A2 स्टार्टर के प्वाइन्ट A से संयोजित किया जाता है तथा मोटर
क्षेत्र का दूसरा सिरा Z, स्टार्टर के प्वाइन्ट Z से संयोजित रहता है। स्टार्टर का
प्वाइन्ट L स्टार्टर की अधिभार कुण्डली O.C. (overload coil) द्वारा
प्रारम्भन भुजा से संयोजित होती है। प्रारम्भन भुजा को पकड़ने वाला मूठ
विद्युतरोधित पदार्थ से बना होता है।
कार्य विधि:-
जब मोटर को
प्रारम्भ (Start) करना होता है तब मुख्य स्विच को बन्द (closed) कर देते है तथा तब प्रारम्भन भुजा (Starting arm) को धीरे-धीरे दायीं ओर चलाते है। जब तक
भूजा स्टैंड न० 1 के सम्पर्क
में होती है तब तक क्षेत्र परिपथ (field circuit) लाइन के
सीधा पाश्व (across)में संयोजित
रहता है तथा इसी समय कुल प्रारम्भन प्रतिरोध (starting
resistance) आर्मेचर के श्रेणी में होता है। आर्मेचर द्वारा ली गई प्रारम्भन धारा (starting current)
जहाँ Rs = प्रारम्भन प्रतिरोध तथा Ra =आर्मेचेर प्रतिरोध है।
अब
जैसे ही प्रारम्भन भुजा को आगे की ओर चलाया जाता है, प्रारम्भन
प्रतिरोध (Rs) घटता जाता है। अब प्रारम्भन भुजा 'ON' स्टैंड पर पहुँच जाती है अर्थात् मोटर अपनी पूर्ण गति
प्राप्त कर लेती है तब प्रारम्भन प्रतिरोध पूर्ण रूप से कट जाता है।
(A) वोल्टताहीन कुण्डली (No-volt-coil) –
यह कुण्डली सिलिकॉन मिश्रधातु पत्तियों (lamination)
पर कुण्डलित(winding) होती है। जिसमें पतले विद्युतरोधित तार से इतने वर्तन(टर्न)
दिये जाते है कि मोटर क्षेत्र की पूर्ण धारा उससे सरलता से प्रवाहित हो सके
वोल्टताहीन कुण्डली (NC). क्षेत्र टर्मिनल Z की श्रेणी में जोड़ी जाती है । इस
कुण्डली के मुख्य दो कार्य हैं । प्रथम, प्रारम्भन भुजा (starting arm) को
चुम्बकीय बल द्वारा मोटर की पूर्ण गति की स्थिति में ON' स्टैंड पर पकड़े रखना तथा दूसरा यदि
सप्लाई वोल्टता अचानक बन्द हो जाये तो अचुम्बकीय होकर प्रारम्भन भुजा को छोड़ देना, ताकि यह स्प्रिंग दाब के कारण 'OFF' स्थिति पर चली जाये तथा पुनः विद्युत
सप्लाई आने पर मोटर को सुरक्षापूर्वक प्रारम्भ किया जा सके।
(B)
अधिभार कुण्डली (over load coil) या OC:-
यह कुण्डली मोटे विद्युतरोधी तारों के बहुत कम वर्तनों (turns) से बनी होती है तथा प्रारम्भन भुजा(staring
arm) तथा लाइन के श्रेणी में जुड़ी रहती है। इसका मुख्य कार्य परिपथ में अधिक लोड
धारा प्रवाहित होने पर, चुम्बकीय
क्षेत्र उत्पत्र करके लीवर (lever) को उठा कर
वोल्टताहीन कुण्डली (NC) के दोनों सिरों को मिला देना है, जिससे वोल्टताहीन कुण्डली (NC) अचुम्बकीय होकर प्रारम्भन भुजा को छोड़
दे तथा प्रारम्भन भुजा स्प्रिंग प्रभाव से 'OFF अवस्था में आ जाये। इस प्रकार अधिभार
कुण्डली OC किसी दोष के कारण मोटर आर्मेचर (armature) परिपथ में अधिक धारा प्रवाह होने के
सम्भावित खतरे से सुरक्षा,वोल्टताहीन कुण्डली (NC) के सहयोग द्वारा प्रदान करती है।
यह स्टार्टर शन्ट तथा कम्पाउण्ड दोनो ही
मोटरों के लिये प्रयोग किया जाता है जहाँ पर स्टार्टर द्वारा ही मोटर की गति को
नियन्त्रण (regulate) करना हो इस
स्टार्टर में चार प्वाइन्ट होते हैं । 3 प्वाइन्ट L, Z तथा A तथा एक चौथा
प्वाइन्ट N होता है जिस पर सप्लाई लाइन का ऋणात्मक
तार जोड़ा जाता है जैसा कि चित्र 2 में दिखाया
गया है। चार प्वाइन्ट स्टार्टर में वोल्टताहीन (N.C) कुण्डली मोटर की क्षेत्र कुण्डली की
श्रेणी में नहीं जोड़ी जाती बल्कि दिष्ट धारा सप्लाई के पार्श्व(across) में
प्रारम्भन प्रतिरोध (Rs) की श्रेणी
जोड़ी जाती है । वोल्टताहीन कुण्डली (Non-volt
coil) मुख्य सप्लाई के सीधे पार्श्व में होती है ताकि OC के सम्पर्कों के अतिभार धारा के कारण
लघुपथित(SHORT CIRCUIT) होने पर, NC चुम्बकित होकर प्रारम्भन भुजा स्प्रिंग
दाब के कारण,OFF स्थिति में जाकर अतिभार धारा(OVER LOAD CURRENT) से मोटर की
सुरक्षा कर सके । इसके लिये No-volt coil (NC) के श्रेणी
में एक सुरक्षात्मक प्रतिरोध R भी लगा दिया
जाता है जैसा कि चित्र 2 में दिखाया गया है
(3) श्रेणी मोटरों के
स्टार्टर (Series motor starter)-
श्रेणी मोटर के लिये स्टार्टर में भी एक
उपयुक्त परिवर्ती प्रतिरोध होता है जो कि मोटर को चलाते समय आर्मेचर परिपथ की
श्रेणी में जोड़ दिया जाता है । प्रतिरोध को धीरे-धीरे पदों में काटते (cut-off) जाते हैं, जैसे-जैसे
मोटर गति को प्राप्त करती जाती है ।
![]() |
चित्र न. 3 |
चित्र 3 में वोल्टताहीन कुण्डली (No-volt coil) के द्वारा
स्टार्टर के आन्तरिक संयोजन (internal connection) दिखाये
गये है इसमें वोल्टताहीन कुण्डली को सुरक्षित प्रतिरोध (R) की
श्रेणी में जोड़ा गया है । इस स्थिति में यदि किसी कारणवश पीछे से सप्लाई बन्द हो
जाये तो स्टार्टर का हैण्डिल स्वयं स्प्रिंग की मदद से वापिस चला जाता है। इस
स्थिति में सुरक्षा वोल्टताहीन कुण्डली द्वारा होती है
प्राय: श्रेणी मोटर के स्टार्टर का प्रयोग मोटर की गति को नियंत्रण
करना है
दोस्तों इस पाठ में हमने आपको डीसी मोटर स्टार्टर के बारे में सारी जानकारी दी है इसके अलावा अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें, धन्यवाद
इसे भी देखे --
दोस्तों इस पाठ में हमने आपको डीसी मोटर स्टार्टर के बारे में सारी जानकारी दी है इसके अलावा अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें, धन्यवाद
इसे भी देखे --
- ट्रांसफार्मर कितने प्रकार का होता है
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें