शुक्रवार, सितंबर 25

कोरोना किसे कहते है और यह कैसे उत्त्पन्न होता है

कोरोना (CORONA)

   corona शब्द को आज के समय ऐसा कोइ नहीं है जो जानता न हो | शायद कोरोना एक ऐसा शब्द है जो दुनिया के किसी भी कोना में एक ही तरह के उच्चारण के साथ बोला जाता है यह दुनिया का सबसे पापुलर word बन गया है ,लेकिन यह नया शब्द नहीं है |

इससे पहले इसको सीमित लोग ही जानते थे ,तो आज आप जानेगे कि कोरोना वायरस से पहले किसका-किसका नाम कोरोना रखा जा चूका है

कोरोना किसे कहते है

 

1. सूर्य के संदर्भ में कोरोना क्या है ?

 

 सूर्य के वर्णमंडल के बाहरी भाग को किरीट या कोरोना (Corona)या आभा कहते हैं। पूर्ण सूर्यग्रहण के समय वह श्वेत वर्ण का होता है । कोरोना अत्यंत विस्तृत क्षेत्र है और प्रकाश-मंडल के ऊपर उसकी ऊँचाई सूर्य के व्यास की कई गुनी होती है।


    कोरोना का तापमान लाखों डिग्री है। पृथ्वी से कोरोना सिर्फ पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही दिखाई देता है।  कोरोना का तीव्र तापमान अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है।

 

2. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में कोरोना क्या होता है ?

किरीट या आभा Corona किसे कहते है :-

   ऐसी वैद्युत-रासायनिक अभिक्रिया जिसमें उच्च वोल्टता के कारण चालक(तार जिसमे धारा प्रवाहित होती है) के चारों ओर की वायु भंजित (Break down) होकर विद्युत की सुचालक बन जाती है और चालक का ही अंग बनकर वैद्युत धारा प्रवाह में सहायक होती है। इस घटना को कोरोना कहते हैं।

  

     यह घटना उस समय (स्थिति) में होती है जब दो चालक समान्तर स्थिति में जिनके बीच की दूरी उनके व्यासा की तुलना में अत्याधिक हो। उस समय वोल्टता का मान बढ़ाने पर एक निश्चित वोल्टता के बाद मन्द-मन्द शी-शी-शी .... की ध्वनि के साथ जामुनी रंग का हल्का प्रकाश उत्पन्न होता है।

👉अल्टरनेटर क्या है? इससे 50Hz आवृति की ac कैसे उत्पन की जाती है?

कोरोना की अभिव्यक्ति (Conception of Corona)

(i) हिसिंग्स ध्वनि का सुनाई देना, जामुनी रंग के प्रकाश का दिखाई देना, ऊष्मा उत्पन्न होना, सतह सम्पकिंत वायु का भंजन होना, रासायनिक प्रक्रिया से ओजोन गैस का बनना आदि।

(ii) यदि चालकों के बीच की दूरी इनके व्यासों की तुलना में अत्यधिक न हो, तो कोरोना बनने से पहले ही वोल्टता उत्सफुलिंगन विसर्जन (Voltage spark over discharge) हो जायेगा।

(iii) प्रत्यावर्ती प्रणाली(ac system) में दोनों तारों पर कोरोना की उत्पत्ति एक समान होती है।

(iv) यदि तार चिकना तथा एक समान अनुप्रस्थ क्षेत्र वाला हो तो प्रकाशयुक्त दीप्ति चालक की सतह पर कुछ दूरी तक एक समान उत्पन्न होगी और तार खुरदरा है तो एक समान माप (diameter) का न हो तो केवल उसी उभार बिन्दु पर इस प्रकार की तीव्रता अधिक हो जायेगी।

(v) दिष्ट धारा प्रणाली के अन्तर्गत ऋणात्मक चालक की अपेक्षा धनात्मक चालक पर एक समान तथा अधिक प्रकाश दीप्ति होती है।

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कोरोना को प्रभावित करने वाले कारक

   शिरोपरि लाइन में चालक(तार) में होने वाले इस घटना को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं:-


 (i) लाइन वोल्टता (Line voltage)

 (ii) चालकों के बीच की दूरी (Distance between the land)

 (iii) चालकों की आकृति एवं प्रमाप (Shape and size of end)

 (iv) चालकों के बीच की दूरी तथा इनके अर्द्धव्यास का अनुपात (Ratio of distance      between the conductor and its radius)

 (v) चालकों के बीच माध्यम की प्रकृति (Nature of medium between the conductors)

 (vi) वायुमण्डल में वायु का घनत्व (Density of air in atmosphere)

(vii) वायु में आयनों की संख्या (Number of ions in air)

 (viii) आयन पर आवेश की मात्रा (Quantity of charge on ion)

 

कोरोना से शिरोपरि लाइन को लाभ:-

(i) अल्पकालिक प्रभावों का कम होना:- कोरोना उत्पत्ति से शिरोपरि लाइन में चालक पर तड़ित(आकाशी बिजली) तथा अन्य सूक्ष्म कारण से उत्पन्न क्षणिक तरंग प्रभाव इत्यादि प्रभाव (अल्पकालिक प्रभावों) कोरोना से समाप्त हो जाते हैं।

(ii) शिरोपरि लाइन में चालकों में कोरोना उत्पत्ति से चालक के आस-पास वाली वायु सम्पर्कित होकर आयनीकृत हो जाती है और चालक के चारों ओर एक विद्युत सुचालक वायु कोष स्थापित हो जाता है। इससे चालक की प्रारम्भिक मोटाई से कुछ अधिक मोटाई हो जाती है।

कोरोना से शिरोपरि लाइन में हानियाँ

(i) कोरोना की उत्पत्ति से वैद्युत शक्ति हानियाँ बढ़ जाती हैं। जिससे शिरोपरि लाइन चालक में संचरण दक्षता घट जाती है।

(ii) कोरोना की उत्पत्ति से वायुमण्डल के वायु में उत्पन्न ओजोन गैस चालक के पदार्थ से रासायनिक प्रक्रिया करती है जिससे चालक के पृष्ठ पर छिद्रों का निर्माण होता है। चालक का पृष्ठ असमान होकर खुरदरा हो जाता है जिससे चालक का वह स्थान जहाँ कोरोना उत्पन्न होता है वह स्थान निर्बल हो जाता है।

 नोट:-किसी सपोर्ट (ex.खम्भा)के द्वरा खिची गई लाइन शिरोपरि लाइन कहलाती है


  hello दोस्तों इस पोस्ट में हमने आपको ''कोरोना किसे कहते है और  कैसे उत्त्पन्न होता है ,इससे  लाइन को क्या लाभ है  लय हानि  |'' के बारे में संक्षिप्त  जानकारी दी है इसके अलावा अगर आपका  कोई सवाल या सुझाव है तो हमें  कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें, धन्यवाद

बुधवार, सितंबर 16

ALTERNATOR IN HINDI(अल्टरनेटर क्या है)

 अल्टरनेटर(ALTERNATORS)

  आज हम इस पोस्ट में यह जाने गे की alternator क्या होता है , इसका कार्य सिधांत क्या है ,और अल्टरनेटर से उत्पन धारा की आवृति का निर्धारण कैसे होता है

अल्टरनेटर क्या होता है ?

वह मशीन जो प्रत्यावर्ती धारा(AC) उत्पन करती है, अल्टरनेटर कहलाती है। इसकी संरचना लगभग DC जनरेटर के समान होती है लेकिन इसमें प्रत्यावर्ती धारा (ac) को प्राप्त करने के लिये, दिक्परिवर्तक (commutator) के स्थान पर स्लिप रिंगें(slip ring) लगी रहती हैं। आज के युग में मितव्ययिता की दृष्टि से संचरण (transmission) उच्च वोल्टता पर किया जाता है तथा उच्च वोल्टता संचरण केवल ट्रांसफार्मर की सहायता से ही सम्भव है,जो केवल प्रत्यावर्ती धारा पर ही कार्य करता है । इसलिय आज प्रायः प्रत्यावर्ती धारा (AC) का ही उत्पादन किया जाता है, यद्यपि कुछ कार्यों के लिये DC का भी उत्पादन किया जाता है।



अल्टरनेटर का कार्य सिद्धान्त

  अल्टरनेटर या प्रत्यावर्ती धारा जनित्रदिष्ट धारा जनित्र(dc जेनेरेटर) की भाँति विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के मौलिक सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसमें भी आर्मेचर कुण्डलन तथा चुम्बकीय क्षेत्र होता है। दिष्ट धारा जनित्र तथा अल्टरनेटर में मुख्य अन्तर यह है कि दिष्ट धारा जनित्र में आर्मेचर घूमता है तथा चुम्बकीय क्षेत्र स्थिर रहता है जबकि अल्टरनेटर में उपरोक्त की ठीक विपरीत व्यवस्था कर दी जाती है। क्षेत्रिय कुण्डलन (magnetic field winding) को घूमाने वाले भाग में व्यवस्थित कर दिया जाता है, जिसे रोटर कहते हैं।अर्थात इसमे magnetic field  को घूमाया जाता है |

अल्टरनेटर का स्टेटर ढलवाँ लोहे का बना होता है जो कि आर्मेचर क्रोड को टेक (support) देता है। स्टेटर में अन्दर की परिधि में आर्मेचर चालक रखने के लिये स्लॉट (slot) बनी होती है । रोटर एक ऐसे गतिपाल पहिये (flywheel) की तरह होता है जिससे उसके बाहरी परिधि में क्रम से N तथा ऽ poll fixed रहते हैं। चुम्बकीय ध्रुवों (magneticpoles) को dc,जो कि 125 से 250 वोल्ट तक की हो सकती है,से उत्तेजित या चुम्बकित किया जाता है । प्राय:आवश्यक उत्तेजना या चुम्बकीय धारा को एक छोटे dc जनरेटर द्वारा प्राप्त किया जाता है

  चूँकि अल्टरनेटर का चुम्बकीय क्षेत्र घूमता रहता है इसलिये उत्तेजना धारा दो स्लिप रिंगों द्वारा चुम्बकीय क्षेत्र को दी जाती है ।

   जब रोटर घूमता है, तब स्टेटर के चालक (स्थिर होने के कारण) चुम्बकीय फ्लक्स को कटता हैं,इस प्रकार स्टेटर में प्रेरित वि. वा. बल (induced e. m. f.) उत्पन्न होता है । चूकि चुम्बकीय ध्रुव N तथा Sक्रम में होते हैं, इसलिये आर्मेचर चालकों में वि. वा. बल प्रेरित करते हैं जो कि पहले एक दिशा में तथा बाद में दूसरी दिशा में प्रवाहित होता है । इस प्रकार स्टेटर चालकों में अल्टरनेटिंग वि० वा० बल (alternating e. m. f.) उत्पन्न हो जाता है।👇

👉INDUCTION MOTOR क्या है, संरचना  कार्य विधि और  उपयोग 

👉DC मोटर  क्या है ? इसका कार्य सिद्धांत, संरचना ,भाग 


अल्टरनेट से उत्पन धारा की आवृति कैसे निर्धारित होती है?

  इस प्रत्यावर्ती वि. वा. बल की आवृत्ति, N तथा poll की संख्या तथा एक सेकण्ड में रोटर के घूमने पर निर्भर करती है।

 

  माना P = चुम्बकीय ध्रुवों की संख्या

N= रोटर के परिक्रमण प्रति मिनट (r.p. m.)

f= अल्टरनेटर की आवृत्ति, चक्र प्रति सेकण्ड (Hz) में

 इस प्रकार रोटर के एक परिक्रमण में एक चालक,P/2 उत्तरी ध्रुव तथा S/2 दक्षिण पुष काटता है।

इसलिये चक्रों/ परिक्रमणों की संख्या :=P/2

चक्रों की संख्या प्रति सेकण्ड = N/60

आवृति,  f =P/2*N/60=PN/120Hz    (चक्र प्रति सेकण्ड)

 

50 Hz आवृति बनाने के लिये अल्टरनेटर को अग्र गतियों पर चलाना होगा।

धुवों की संख्या

2

4

6

8

12

24

48

गति r.p.m.

3000

1500

1000

750

500

250

125

 

 

अल्टरनेटर में आर्मेचर को स्थिर तथा चुम्बकीय क्षेत्र को घूमने की अवस्था में रखने के लाभ :-

 

   अल्टरनेटर में स्थिर आर्मेचर(यहा से विधुत बहार निकलती है) तथा चुम्बकीय क्षेत्र को घूमने की अवस्था में रखने के निम्नलिखित लाभ हैं:-

(i) अधिक से अधिक  आउटपुट धार को बिना ब्रूशों की सहायता से स्थिर टर्मिनलों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

(ii) प्रत्यावर्तकों से 33 किलोवोल्ट (KV) तक की उच्च वोल्टता उत्पत्र की जा सकती है तथा इसके लिये स्थिर आर्मेचर में ही उच्च विद्युतरोधन पदार्थ (high insulation material) दिया जा सकता है।

 (iii) क्षेत्र(रोटर) को दिष्ट धारा (D.C.) वोल्टता देने के लिये केवल दो स्लिप रिंगों से    काम चल जाता है।

(iv) रोटर के हल्का होने के कारण तीव्र गति से घूमने पर स्थिर आर्मेचर से अधिक उच्च वोल्टता प्राप्त की जा सकती है।



 hello दोस्तों इस पोस्ट में हमने आपको ''alternator क्या है और आवृति का निर्धारण कैसे होता है  |'' के बारे में संक्षिप्त  जानकारी दी है इसके अलावा अगर आपका  कोई सवाल या सुझाव है तो हमें  कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें, धन्यवाद