डी.सी.मोटर (D.C. Motor)
परिचय
DC मोटर एक ऐसी मशीन है, जिसे जब वैद्युत ऊर्जा प्रदान की जाती है तब वह उसे यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है।
डी.सी.मोटर को ऐसे स्थानों पर भी प्रयोग किया जा सकता है, जहाँ गति नियन्त्रण की आवश्यकता हो । इसलिये प्रायः ट्रोली (trolleys), विद्युत रेलों तथा उत्पादन तन्त्र या लिफ्ट (elevators) इत्यादि में DC मोटरों का प्रयोग किया जाता है। यह 1/100 H.P. से कई हजार H.P तक के विभिन्न आकारों में बनाई जा सकती है।
किसी धारा प्रवाह
करते हुए चालक को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तब उस पर एक यांत्रिक बल (mechanical force) कार्य करता है
जिसे फ्लेमिंग के बॉये-हाथ के नियम (Fleming's left hand rule) द्वारा ज्ञात किया जा सकता है । इस बल के कारण चालक बल की दिशा में गतिशील
हो जाता है। यही मोटर का कार्य सिद्धान्त
है।
यदि चालक की लम्बाई= L मीटर,
क्षेत्र तीव्रता = B बेबर प्रति वर्ग मीटर (Bwb/m2 ) तथा चालक
में प्रवाहित धारा= i ऐम्पियर हो तो चालक द्वारा अनुभव किया गया बल,F = iBL न्यूटन होगा।
उपरोक्त कथन को अब सरल
शब्दों में समझिये
कल्पना कीजिये कि कोई धाराहीन चालक (conductor)(जो सप्लाई से कनेक्ट न हो ) निम्न चित्र के अनुसार मुख्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा हुआ है तथा चुम्बकीय क्षेत्र बिना चालक से प्रवाहित हुए N ध्रुव से S ध्रुव के लिये, वायु अन्तराल (air gap) को पार करता है ।
चित्र (१) |
चित्र (2) के अनुसार चालक में धारा प्रवाहित हो रही है लेकिन N ध्रुव तथाS ध्रुव के चुम्बकीय प्रभाव को हटा लिया गया है। इस स्थिति में चालक का अपना चुम्बकीय क्षेत्र बना रहेगा। चालक की चुम्बकीय क्षेत्र बल रेखायें कार्क पेंच (cork screw) नियम के अनुसार दक्षिणावर्त (clockwise) होगी
चित्र (2 ) |
चित्र (3) के
अनुसार चालक में धारा प्रवाह हो रहा है तथा मुख्य चुम्बकीय क्षेत्र भी उपस्थित है
। चालक में धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र,चालक
के ऊपर मुख्य क्षेत्र के साथ कार्य करता है लेकिन चालक के नीचे मुख्य क्षेत्र का
विरोध करता है। इसका परिणाम यह होता है कि चालक के ऊपर के क्षेत्र में फ्लक्स का
जमाव हो जाता है तथा नीचे वाले क्षेत्र में फ्लक्स घनत्व (flux density) कम हो
जाता है।
चित्र (3 ) |
इससे यह स्पष्ट है कि जब चालक पर बल कार्य कर रहा है तो वह चालक को नीचे की ओर धकेलने का कार्य करता है जैसा कि चित्र (3) में तीर के निशान से दिखाया गया है। | चित्र (4) के अनुसार यदि चालक की धारा की दिशा में परिवर्तन कर दिया जाये तो फ्लक्स का जमाव नीचे की ओर हो जायेगा तथा वह चालक को ऊपर की ओर ले जाने का प्रयत्न करेगा । वास्तव में आर्मेचर पर कई कुण्डलियाँ (coils) कुण्डलित होती हैं। अत: ज्यों ही आर्मेचर आगे की दिशा में घूमेगा तो पूर्व चालक के स्थान पर पीछे के चालक ( CONDUCTOR) आते रहेंगे जिन पर पुनः N तथा S के अधीन पूर्व दिशा में बल प्रभाव पड़ता रहेगा जिसके कारण आर्मेचर एक ही दिशा में घूमता रहेगा
चित्र (4) |
DC मोटर की सामान्य संरचना (General
Construction of D. C. Motor)
संरचना के दृष्टिकोण से डी .सी .मोटर तथा जनरेटर में कोई विशेष अन्तर नहीं है । एक मशीन को मोटर तथाजनरेटर दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है। यदि D.C. मशीन को वैद्युत शक्ति प्रदान की जाये तो उससेयान्त्रिक ऊर्जा प्राप्त होती है तथा यह मशीन मोटर कहलाती है । यदि मशीन को किसी प्रथम चालक (primemover) द्वारा यान्त्रिक ऊर्जा प्रदान का जाये तो उससे वैद्युत ऊर्जा प्राप्त होती है तथा यह मशीन जनरेटर कहलाती है
डी.सी.मोटर की संरचना(Construction of D.C. motor )
डी.सी.मशीन में निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं
(अ) क्षेत्रीय व्यवस्था या स्टेटर
(ब) आर्मेचर
(अ) क्षेत्रीय
व्यवस्था या स्टेटर (Field system or stator)–
चित्र में एक
चार ध्रुव वाली डी.सी.मशीन का चुम्बकीय परिपथ, आर्मेचर
तथा क्षेत्रीय व्यवस्था का प्रबन्ध दिखाया गया है।
स्टेटर में विभिन्न भाग होते हैं।
(i) योक yoke) या ढाँचा.
(ii) ध्रुव क्रोड या ध्रुव ढाचा तथा ध्रुव नाल (pole
core or pol body and pole shoe),
(iii) क्षेत्रीय
कुण्डलन (field winding)
(iv) सिरा
प्लेट (end plates)
(i)योक (yoke) या ढाँचा –
डी.सी.मशीन का ढाँचा, ध्रुवों के मध्य चुम्बकीय परिपथ पूरा करने के लिये कार्य करता है। छोटी मशीनों के लिये ढलवाँ लोहा (cast iron) के तथा बड़ी मशीनों के लिये इस्पात के गढ़े हुए (fabricated) ढाँचे प्रयोग में लाये जाते है । ढलवें लोहे की अपेक्षा गढ़े हुए लोहे (fabricated steel) की चुम्बकशीलता दुगुनी होती है लेकिन लागत अधिक होने के कारण इन्हें छोटी मशीनों में प्रयोग किया जाता है।
(ii) ध्रुव क्रोड
या ढाँचा तथा घुवीय नाल (Pole
body and pole shoe):-
चुम्बकीय ध्रुव में दो भाग होते हैं, एक ध्रुवीय ढाँचा तथा दूसरा धुवीय नाल जो कि योक (yoke) के साथ वोल्ट द्वारा कसे होते हैं । धुव ढाँचा या क्रोड ढलवाँ लोहे का भी हो सकता है लेकिन प्रायः इसे इस्पात की पत्तियों (laminations) से बनाया जाता है। पत्तियों की मोटाई 1 से 1.5 मिमी तक हो सकती है। ध्रुवीय ढाँचा (pole body) प्रायः वृत्ताकार अनुप्रस्थ काट का होता है। इनका कार्य विद्युतरोधी तारों (insulated wires) की बनी क्षेत्रीय कुण्डलियों को वहन करना है जिनमें उत्तेजक धारा (exciting current) प्रवाहित होती है।
(ब)आर्मेचर(Armature):-
आर्मेचर मोटर का घुमने वाला भाग होता है इससे मकेनिकल उर्जा उत्तपन्न होती है | इसकी आर्मेचर कोर में वाइंडिंग होती है | आर्मेचर core 0.3 से 0.5 मिमी मोटी उच्च चुम्बक शीलता वाला सिलकन इस्पात की पतलित पत्तियों (steel lamination )की बनी होती है तथा प्रतेक पत्ती पर वार्निश की पतली परत चढ़ा दी जाती है
इसे भी देखे
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें