ट्राँसफार्मर का शीतलीकरण (Cooling of Transformer)
ट्राँसफार्मर में कोई घूमने वाला भाग नहीं होता है जिसके कारण इनका शीतलन, घूमने वाली मशीनों की अपेक्षा कठिन होता है। ट्राँसफार्मर में ताप, लौह एवं ताम्र हानियों के कारण उत्पन्न होता है। यदि इस ताप को वायुमण्डल में स्थानान्तरण करने का कोई प्रबन्धन न हो तो इसके कारण कुण्डलनों (winding) का ताप बहुत अधिक बढ़ जाता है जिसके कारण कुण्डलनों का विद्युतरोधन (insulation) नष्ट हो जाता है तथा ट्राँसफार्मर जल सकता है। अतः यह आवश्यक है कि ट्रॉसफार्मरों को शीतल करते रहना चाहिये। ट्रॉसफार्मरों को अग्र प्रणालियों द्वारा शीतल किया जाता है।
(i) प्राकृतिक शीतलीकरण (Natural cooling)
(ii) तेल शीतलीकरण (Oil
cooling)
(iii) तेल निमज्जित जल शीतलीकरण (Oil immersed water cooling)
(iv) वायु झोंका शीतलीकरण (Air blast cooling)
1 प्राकृतिक शीतलीकरण (Natural cooling)
25 kVA तक निर्गत (output) वाले वितरण ट्राँसफार्मर को शीतल करने के लिये प्राकृतिक वायु काफी होती है। वायुमण्डल की वायु, ट्रॉसफार्मर में उत्पन्न ऊष्मा का शोषण करने के लिये पर्याप्त होती है
2 तेल शीतलीकरण (0il cooling)
आजकल प्रायः सभी बड़े ट्रांसफार्मरों को तेल में डुबाकर शीतलीकरण किया जाता है क्योकि तेल वायु की अपेक्षा विद्युतरोधी (insulation) तथा अच्छा ताप चालक (good conductor of heat) है। इस विधि में ट्रॉसफार्मर क्रोड भी उसकी कुण्डलनों सहित एवं टैंक में रख दिया जाता है, टेक की बाहरी सतह में खोखली नलिकायें (tubes) बनी होती हैं । जिनमें ऊपरी व नीचे के सिरे टैंक में अन्दर की ओर खुलते हैं जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
इस टैंक में खनिज तेल (mineral
oil) भर दिया जाता है।
कुण्डलनों द्वारा उत्पन्न ऊष्मा, तेल द्वारा शोषित की जाती
है तथा इस ऊष्मा के कारण तेल में संचरण (convection) धारायें
उत्पन्न होने लगती हैं, जिसके कारण गर्म तेल नीचे से ऊपर
चलने लगता है तथा ऊपर का गर्म तेल नलिकाओं के ऊपरी सिरों से नीचे की ओर बहना आरम्भ
कर देता है जो नलिकाओं को भी गर्म करने का प्रयास करता है लेकिन वायुमण्डल की वायु,
नलिकाओं को शीघ्र ठण्डा कर देती है। यह तेल ठण्डा होता हुआ
पुनः ट्राँसफार्मर की टैंक की तली में पहुँच जाता है तथा पुनः यही क्रिया चलती
रहती है। यह विधि 2 MVA तक के ट्राँसफार्मरों को ठण्डा करने
में प्रयोग की जाती हैं।
3 तेल निमज्जित, जल शीतलीकरण विधि (Oil immersed water cooling)
2 MVA से
अधिक निर्गत (आउटपुट ) वाले ट्रॉसफार्मरों के लिये यह विधि प्रयोग की जाती है। इस विधि में पानी तेल की सतह के नीचे रखी हुई नलिकाओं में होकर जाता है। तेल एक कूलर
में चक्कर लगाता रहता है तथा
ठण्डा होता रहता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
इस विधि में एक हानि है कि पानी दबाव में रहता
है तथा इस स्थिति में यदि पानी का तल लीक करने लगे तो पानी छेद से तेल में जा सकता
है इसलिये तेल को पानी की अपेक्षा उच्च दबाव पर रखा जाना चाहिये। तेल को कूलर से
पम्प द्वारा खींचा जाता है तथा कम दबाव वाले पानी में ठण्डा किया जाता है।
4 वायु झोंका शीतलीकरण (Air Blast Cooling)
जिन
उपकेन्द्रों पर सस्ता पानी उपलब्ध नहीं होता है वहाँ ट्राँसफार्मरों को वायु
प्रवाह द्वार भी ठन्डा किया जाता है। ऐसी
दशा में वायु को पहले छान लिया जाता है अथवा कुछ समय पश्चात् धूल के कण संवाहन नलियों
(ventilation
ducts) को भर देंगे।
इस विधि में सबसे बड़ी हानि यह है कि
विद्युतरोधन सामर्थ्य (insulation strength) कम हो जाती है। इस
प्रकार के ट्रांसफार्मर तेल में डूबे नहीं होते हैं बल्कि इन्हें एक पतली चादर के
बने खोल में रखा जाता है, यह खोल दोनों
सिरों पर खुला रहता है। वैद्युत पंखों या ब्लोवर (blower) को
एक सिरे पर लगाकर जब चलाया जाता है तो उसके कारण दिया झोंका ट्रॉसफार्मर कुण्डलनों
को ठंडा करते हुए दुसरे सिरे से बाहर निकल जाता है, जैसा कि
चित्र में दिखाया गया है।
वायु झोंका शीतलीकरण (Air Blast Cooling) |
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