गुरुवार, जनवरी 3

TRANSFORMER IN HINDI | ट्रांसफार्मर की परिभाषा |TRANSFORMER क्या है


Transformer in Hindi 


ट्रांसफार्मर क्या होता है ?

ट्रांसफार्मर एक स्थिर विधुत मशीन है जो प्रत्यावर्ती धारा के वोल्टेज को परिवर्तित करने के काम आती है जिसकी आवृत्ति समान रहती है।
TRANSFORMER

 ट्रांसफार्मर का मूल सिद्धान्त क्या है 

(BASIC PRINCIPLE OF TRANSFORMER)


    ट्रांसफार्मर एक ऐसी  स्थैतिक  मशीन (STATIC MACHINE) है  जो प्रत्यावर्ती धारा के विभव को समान आवृत्ति पर परिवर्तित  (TRANSFER) करने के काम आती है, अर्थात् ट्राँसफार्मर निम्न  वोल्टता वाली प्रबल प्रत्यावर्ती विधुत को  उच्च  वोल्टता की निर्बल धारा में, अथवा उच्च वोल्टता की निर्बल धारा को निम्न तोल्टता वाली प्रबल विद्युत धारा में दी हुई आवृत्ति के समान आवृत्ति पर स्थानान्तरित करता है ।
ट्रांसफार्मर क्या है

 ट्राँसफार्मर का कार्य सिद्धान्त स्थैतिक प्रेरण सिद्धान्त पर आधारित है।
     सधारणत:  एक  ट्रॉसफार्मर ऐसे चुम्बकीय परिपथ का बना होता है जिसमें   दो विशिष्ट कुण्डलन (WINDING) होती है  जिन्हें  प्राथमिक  कुण्डलन (PRIMARY WINDING) तथा द्वितीयक कुण्डलन (SECONDARY WINDING) कहते हैं।

  जब प्राथमिक कुण्डलन को प्रत्यावर्ती धारा सप्लाई (A.C. SUPPLY) से जोड़ दिया जाता है तो पटलित क्रोड में प्रत्यावर्ती फ्लक्स स्थापित होता है तथा इस फ्लक्स के द्वितीयक कुण्डलन से सहलग्न (LINKING) होने पर द्वितीयक कुण्डलन में एक प्रत्यावर्ती वि० वा० बल (E.M.F.) प्रेरित होता है। यह क्रिया दोनों कुण्डलनों के बीच प्रेरण के कारण होती है। 

 प्रत्यावर्ती फ्लक्स के कारण प्राथमिक कुण्डलन में भी स्वप्रेरण (SELF INDUCTION) के कारण वि० वा० बल प्रेरित होता है। 

यदि फ्लक्स दोनों कुण्डलनों के प्रत्येक वर्तन से पूर्ण रूप से सम्बद्ध होता है तो प्रेरित वि, वा, बल का मान प्रत्येक क्षण प्रत्येक वर्तन (turn)के बिल्कुल समान होगा।
 इस प्रकार द्वितीयक कुण्डलन में प्रेरित वि० वा० बल प्राथमिक कण्डलन (winding)में प्रयुक्त वोल्टता  (APPLIED VOLTAGE) के बिल्कुल विपरीत फेज में होगा ( कुण्डलनों के प्रतिरोध उपेक्षित मानते हुए)। द्वितीयक कुण्डलन(वाइंडिंग) में प्रेरित विधुत वाहक बल द्वितीयक कुण्डलन के वर्तनों  (तारो के लपेटो  )के  संख्या पर निर्भर करता है।
 जब द्वितीयक कुण्डलन में वर्तनों की संख्या प्राथमिक   कुण्डलन से अधिक होगी जब द्वितीयक कुण्डलन में प्रेरित वि० वा० बल प्राथमिक कुण्डलन में प्रयुक्त वोल्टता से अधिक होगा।

  • इन्हें भी देखे
≫ ट्रांसफार्मर के प्रकार
≫ ट्रांसफार्मर का शीतलन 
≫ synchronous motor क्या है  और कैसे काम करता है 

ट्रांसफार्मर के मुख्य भाग (Main Parts of Transformer)


ट्रांसफार्मर के निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं

(a) कोर (Core) -

कोर का मुख्य कार्य पोल फ्लक्स के लिए चुम्बकीय पथ प्रवाहित करना है एवं ट्रांसफार्मर वाइंडिंग को सहायता प्रदान करना है।
ट्रांसफार्मर कोर

(b) कुण्डलन (Windings) -

ट्रांसफार्मर वाइंडिंग निम्नलिखित दो तरह की होती है

  1. प्राइमरी वाइंडिंग
  2. सेकण्ड्री वाइंडिंग

यह मुख्यत: चालक (conductor) होते हैं जो सबसे अच्छा चालक एवं सस्ता हो उस चालक से वाइंडिंग की जाती है।
ट्रांसफार्मर वाइंडिंग मुख्य रूप से वाइंडिंग टर्न पर निर्भर करती है। प्राइमरी वाइंडिंग वह है जिस पर हम सप्लाई वोल्टेज देते हैं। तथा सेकण्ड्री वाइंडिंग वह है जिस पर हम लोड लगाते हैं

(c) विद्युतरोधन (Insulation)

विद्युतरोधन वह है जिससे धारा प्रवाहित नहीं होती। विद्युतरोधन का उपयोग ट्रांसफार्मर में इसलिए किया जाता है कि दोनों वाइंडिंग को एक-दूसरे से विद्युतरोधित किया जा सके जो विभिन्न परतों के मध्य किया जाता है

(D) टैंक (Tank)

ट्रांसफार्मर टैंक वह है जिसमें ट्रांसफार्मर को रखा जाता है। टैंक का उपयोग शीतलीकरण के लिए किया जाता है और टैंक में संवाहन नलिकाएँ लगाई जाती हैं जो वायु का संरक्षण कर सके एवं तेल शीतलीकरण में बाहर से खोखली नलिकाएं लगाई जा सकें तथा टैंक में ट्रांसफार्मर तेल भरा जा सके।

(e) टर्मिनल तथा टर्मिनल बॉक्स (Terminal and Terminal Box)


टर्मिनल अधिकतम पीतल के बनाए जाते। हैं तथा इनका उपयोग प्राइमरी तथा सेकण्ड्री टर्मिनलों या टर्मिनल बॉक्स के सिरों के लिए किया जाता है। टर्मिनल बॉक्स को टैंक के ऊपर लगाया जाता है।

(f) ब्रीदर (Breather)

यह ट्रांसफार्मर को श्वास लेने के लिए लगाया जाता है और इससे हवा फिल्टर होकर अन्दर प्रवेश करती है और यह हवा में उपस्थित नमी एवं धूल को फिल्टर करता है
 
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