बुधवार, सितंबर 16

ALTERNATOR IN HINDI(अल्टरनेटर क्या है)

 अल्टरनेटर(ALTERNATORS)

  आज हम इस पोस्ट में यह जाने गे की alternator क्या होता है , इसका कार्य सिधांत क्या है ,और अल्टरनेटर से उत्पन धारा की आवृति का निर्धारण कैसे होता है

अल्टरनेटर क्या होता है ?

वह मशीन जो प्रत्यावर्ती धारा(AC) उत्पन करती है, अल्टरनेटर कहलाती है। इसकी संरचना लगभग DC जनरेटर के समान होती है लेकिन इसमें प्रत्यावर्ती धारा (ac) को प्राप्त करने के लिये, दिक्परिवर्तक (commutator) के स्थान पर स्लिप रिंगें(slip ring) लगी रहती हैं। आज के युग में मितव्ययिता की दृष्टि से संचरण (transmission) उच्च वोल्टता पर किया जाता है तथा उच्च वोल्टता संचरण केवल ट्रांसफार्मर की सहायता से ही सम्भव है,जो केवल प्रत्यावर्ती धारा पर ही कार्य करता है । इसलिय आज प्रायः प्रत्यावर्ती धारा (AC) का ही उत्पादन किया जाता है, यद्यपि कुछ कार्यों के लिये DC का भी उत्पादन किया जाता है।



अल्टरनेटर का कार्य सिद्धान्त

  अल्टरनेटर या प्रत्यावर्ती धारा जनित्रदिष्ट धारा जनित्र(dc जेनेरेटर) की भाँति विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के मौलिक सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसमें भी आर्मेचर कुण्डलन तथा चुम्बकीय क्षेत्र होता है। दिष्ट धारा जनित्र तथा अल्टरनेटर में मुख्य अन्तर यह है कि दिष्ट धारा जनित्र में आर्मेचर घूमता है तथा चुम्बकीय क्षेत्र स्थिर रहता है जबकि अल्टरनेटर में उपरोक्त की ठीक विपरीत व्यवस्था कर दी जाती है। क्षेत्रिय कुण्डलन (magnetic field winding) को घूमाने वाले भाग में व्यवस्थित कर दिया जाता है, जिसे रोटर कहते हैं।अर्थात इसमे magnetic field  को घूमाया जाता है |

अल्टरनेटर का स्टेटर ढलवाँ लोहे का बना होता है जो कि आर्मेचर क्रोड को टेक (support) देता है। स्टेटर में अन्दर की परिधि में आर्मेचर चालक रखने के लिये स्लॉट (slot) बनी होती है । रोटर एक ऐसे गतिपाल पहिये (flywheel) की तरह होता है जिससे उसके बाहरी परिधि में क्रम से N तथा ऽ poll fixed रहते हैं। चुम्बकीय ध्रुवों (magneticpoles) को dc,जो कि 125 से 250 वोल्ट तक की हो सकती है,से उत्तेजित या चुम्बकित किया जाता है । प्राय:आवश्यक उत्तेजना या चुम्बकीय धारा को एक छोटे dc जनरेटर द्वारा प्राप्त किया जाता है

  चूँकि अल्टरनेटर का चुम्बकीय क्षेत्र घूमता रहता है इसलिये उत्तेजना धारा दो स्लिप रिंगों द्वारा चुम्बकीय क्षेत्र को दी जाती है ।

   जब रोटर घूमता है, तब स्टेटर के चालक (स्थिर होने के कारण) चुम्बकीय फ्लक्स को कटता हैं,इस प्रकार स्टेटर में प्रेरित वि. वा. बल (induced e. m. f.) उत्पन्न होता है । चूकि चुम्बकीय ध्रुव N तथा Sक्रम में होते हैं, इसलिये आर्मेचर चालकों में वि. वा. बल प्रेरित करते हैं जो कि पहले एक दिशा में तथा बाद में दूसरी दिशा में प्रवाहित होता है । इस प्रकार स्टेटर चालकों में अल्टरनेटिंग वि० वा० बल (alternating e. m. f.) उत्पन्न हो जाता है।👇

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अल्टरनेट से उत्पन धारा की आवृति कैसे निर्धारित होती है?

  इस प्रत्यावर्ती वि. वा. बल की आवृत्ति, N तथा poll की संख्या तथा एक सेकण्ड में रोटर के घूमने पर निर्भर करती है।

 

  माना P = चुम्बकीय ध्रुवों की संख्या

N= रोटर के परिक्रमण प्रति मिनट (r.p. m.)

f= अल्टरनेटर की आवृत्ति, चक्र प्रति सेकण्ड (Hz) में

 इस प्रकार रोटर के एक परिक्रमण में एक चालक,P/2 उत्तरी ध्रुव तथा S/2 दक्षिण पुष काटता है।

इसलिये चक्रों/ परिक्रमणों की संख्या :=P/2

चक्रों की संख्या प्रति सेकण्ड = N/60

आवृति,  f =P/2*N/60=PN/120Hz    (चक्र प्रति सेकण्ड)

 

50 Hz आवृति बनाने के लिये अल्टरनेटर को अग्र गतियों पर चलाना होगा।

धुवों की संख्या

2

4

6

8

12

24

48

गति r.p.m.

3000

1500

1000

750

500

250

125

 

 

अल्टरनेटर में आर्मेचर को स्थिर तथा चुम्बकीय क्षेत्र को घूमने की अवस्था में रखने के लाभ :-

 

   अल्टरनेटर में स्थिर आर्मेचर(यहा से विधुत बहार निकलती है) तथा चुम्बकीय क्षेत्र को घूमने की अवस्था में रखने के निम्नलिखित लाभ हैं:-

(i) अधिक से अधिक  आउटपुट धार को बिना ब्रूशों की सहायता से स्थिर टर्मिनलों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

(ii) प्रत्यावर्तकों से 33 किलोवोल्ट (KV) तक की उच्च वोल्टता उत्पत्र की जा सकती है तथा इसके लिये स्थिर आर्मेचर में ही उच्च विद्युतरोधन पदार्थ (high insulation material) दिया जा सकता है।

 (iii) क्षेत्र(रोटर) को दिष्ट धारा (D.C.) वोल्टता देने के लिये केवल दो स्लिप रिंगों से    काम चल जाता है।

(iv) रोटर के हल्का होने के कारण तीव्र गति से घूमने पर स्थिर आर्मेचर से अधिक उच्च वोल्टता प्राप्त की जा सकती है।



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